बीबीसी डॉक्युमेंट्री की मंशा को समझें

अवधेश कुमार

बीबीसी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी डॉक्यूमेंट्री को देखने और दिखाने पर उतारू लोग क्या पाना चाहते हैं समझ से परे है। वैसे इसके दिखाने के लिए जिद पर सामने आने वालों की संख्या अत्यंत कम है। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या इंडिया :द मोदी क्वेश्चन की विषयवस्तु को लाने के पीछे कोई अच्छा उद्देश्य हो सकता है? बीबीसी ने कहा है कि इसमें नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय संघ स्वयंसेवक संघ से लेकर भाजपा में आने, मुख्यमंत्री बनने और प्रधानमंत्री तक की सफर का विवरण है। सच यह है कि सबसे ज्यादा चर्चा गुजरात दंगों की है। गुजरात दंगों के 20 वर्ष हो गए। भारत का आम आदमी उससे बाहर निकल निकल चुका है। बावजूद इस रूप में फिल्माने का क्या उद्देश्य हो सकता है?

•बीबीसी का कहना है कि ब्रिटिश विदेश मंत्रालय से उन्हें एक रिपोर्ट मिली जिसको आधार बनाकर इसका निर्माण किया है।

•डॉक्यूमेंट्री का एकमात्र थीम यही है कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में हिंसा के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे। डॉक्यूमेंट्री नरेंद्र मोदी को हिंसा का प्रायोजक व संरक्षक दोनों बताता है।

• इस तरह डॉक्यूमेंट्री का प्रत्यक्ष उद्देश्य यह साबित करना है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार, भाजपा आदि ने योजनाबद्ध तरीके से मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा कराई और की।

क्या किसी डॉक्यूमेंट्री का ऐसा स्वर पहली बार है? क्या इसे स्वीकार किया जा सकता है?

• प्रतिबंधित होने के कारण मैंने डॉक्यूमेंट्री नहीं देखी है। विदेश में देखने वाले जिन लोगों ने जानकारी दी उसके आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें नया कुछ भी नहीं है।

• पहले स्वयं बीबीसी, अनेक विदेशी और यहां तक कि भारतीय मीडिया संस्थानों ने ऐसी रिपोर्ट और डॉक्यूमेंट्री न जाने कितनी बार दिखाई। सबमें मिलाजुला कर यही बातें थीं।

• डॉक्यूमेंट्री की थीम को पुष्ट करने के लिए जिन लोगों के वक्तव्य लिए गए हैं वे सब संघ ,भाजपा, मोदी के विरुद्ध पहले से झंडा उठाए हुए हैं।

जहां तक इसे स्वीकार करने की बात है तो …

•एक, पिछले वर्ष जून में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात दंगों पर अपने अंतिम फैसले में स्पष्ट लिखा है कि हिंसा के पीछे सरकार की सुनियोजित साजिश या भागीदारी का रंच मात्र सबूत नहीं मिलता।

• दो, दंगों की छानबीन के लिए उच्चतम न्यायालय की मॉनिटरिंग में गठित विशेष जांच दल या सिट ने 8 फरवरी, 2012 की अपनी अंतिम रिपोर्ट में स्पष्ट कहा था कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी या सरकार की साजिश या हिंसा में सुनियोजित भूमिका के किंचित भी प्रमाण नहीं मिले हैं।

• तीन, उच्चतम न्यायालय में इसी के विरुद्ध याचिका दायर हुई थी। न्यायालय ने सिट की भूमिका को सराहा और कहा कि इसको अस्वीकार करने का कोई आधार नहीं है।

इस तरह यह डॉक्यूमेंट्री उच्चतम न्यायालय के फैसले के विरुद्ध है। इस कारण यह शीर्ष न्यायालय की विश्वसनीयता और साख को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश है। प्रश्न है कि सिट और उच्चतम न्यायालय से परे बीबीसी को ऐसे तथ्य कहां से मिल गए जिनसे उसे हिंसा तत्कालीन गुजरात सरकार द्वारा नियोजित व संरक्षित लगता है? जब भी ऐसी डॉक्यूमेंट्री, रिपोर्ट आदि को भारत विरोधी और देश की एकता अखंडता को प्रभावित करने वाला कहा जाता है तो पूछा जाता है कि आखिर मोदी, संघ और भाजपा का विरोध भारत विरोध कैसे हो गया?

•एक,पिछले दो दशक में भारत में हुए आतंकवादी हमलों में पकड़े गए आतंकवादियों में से अनेक ने यही कहा कि उन्हें गुजरात दंगों के जो वीडियो दिखाए गए उनसे गुस्सा पैदा हुआ कि यहां मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और वे हिंसा के लिए तैयार हुए।

• दो,ऐसी अनेक रिपोर्ट हैं जिनमें भारत सहित विश्व भर में अतिवादी जिहादी तत्वों के बीच गुजरात दंगों की एकपक्षीय तस्वीरें पेश कर उन्हें भारत विरोधी बनाया गया।

• तीन,यह डॉक्यूमेंट्री भी ऐसे समूहों के बीच पहुंचा होगा जो वर्तमान भारत सरकार को इस्लाम और मुसलमानों का दुश्मन बना कर प्रचारित करेंगे। वैश्विक जिहादी आतंकवाद को देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के लिए पहले से व्याप्त खतरे में कितनी वृद्धि होगी।

• चार, स्वयं भारत में अतिवादी तत्व ऐसा दुष्प्रचार कर रहे हैं जिस कारण तन से जुदा के नारे लगे और जुदा हुए।

अगर डॉक्यूमेंट्री के तथ्यों और आरोपों में सच्चाई होती तब भी इसे प्रचारित करने से पूर्व सौ बार सोचने की आवश्यकता थी, जबकि यह सच्चाई से परे है। डॉक्युमेंट्री में रिपोर्ट लिखने वाले एक कूटनीतिक कह रहे हैं कि हमारी जांच के निष्कर्ष सही हैं। हिंसा में 2000 लोग मारे गए थे और मोदी उसके लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार थे।

•यह रिपोर्ट तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मंत्री जैक स्ट्रॉ के आदेश का हिस्सा थी।

•कहा गया है कि हिंसा का विस्तार मीडिया में आई रिपोर्टों से कहीं अधिक था और दंगों का लक्ष्य मुसलमानों को खदेड़ कर बाहर करना था।

• जैक स्ट्रा कह रहे हैं कि यह बहुत ही हैरान करने वाली रिपोर्ट थी। यह बहुत ही गंभीर दावा था कि मुख्यमंत्री मोदी ने पुलिस को पीछे रख कर और हिंदू चरमपंथियों को शह देकर एक सक्रिय भूमिका निभाई थी।

बीबीसी का वक्तव्य है कि इस डॉक्यूमेंट्री के लिए उच्चतम संपादकीय मानकों का पालन करते हुए गहन रिसर्च किया गया है। प्रश्न है कि क्या गुजरात में भारतीय जांच एजेंसियों न्यायालयों आदि से ज्यादा पहुंच ब्रिटिश तंत्र की थी? इस डॉक्यूमेंट्री के आरंभ के कुछ मिनट में ही गोधरा रेल दहन के बारे में कहा गया है कि इसकी पीछे किसकी भूमिका थी यह अभी भी विवादित है और मुसलमानों पर इसका आरोप लगाया गया। न्यायालय ने उनके दोषियों को सजा तक दे दी और सारा मामला कानूनी दृष्टि से भारत में बिल्कुल साफ हो गया। फिर ऐसी टिप्पणी का क्या अर्थ है? दूसरे दंगों में 2000 नहीं बल्कि कुल 1040 लोग मारे गए थे जिनमें मुसलमानों की संख्या 750 के आसपास थी। शेष हिंदू और पुलिस वाले थे। दंगा सरकार द्वारा प्रायोजित थी तो इतनी संख्या में हिंदू और पुलिस के लोग कैसे मारे गए? उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में दंगों में सरकार और मोदी की भूमिका साबित करने के लिए लगातार कानूनी लड़ाई लड़ने वालों के विरुद्ध जांच करने की अनुशंसा यूं ही नहीं की है।

गुजरात दंगा या ऐसे दूसरे दंगे हम पर शर्मनाक धब्बा हैं, पर पिछले किंतु पिछले 20 वर्षों से इस तरह प्रचारित किया गया मानो इसके पहले और बाद में भारत और दुनिया में दंगे हुए ही नहीं हो। ब्रिटेन ही कई दंगों की मार झेल चुका है। भारत के मीडिया ने कभी वहां की सरकार को इसके लिए खलनायक नहीं बनाया।

यह प्रश्न भी उठता है कि उस समय की रिपोर्ट जिसे सार्वजनिक नहीं किया गया वह अचानक बाहर कैसे आ गई? जैक स्ट्रा और ऐसे दूसरे अनेक ब्रिटिश राजनीतिक मानवाधिकारों से लेकर हिंदू-मुस्लिम संबंधों यहां तक कि भारत में सिखों को लेकर भी दुष्प्रचार अभियान में हमेशा शामिल रहे हैं।

इसलिए यह न मानने का कोई कारण नहीं है कि इस रिपोर्ट को बहुआयामी नकारात्मक उद्देश्यों की दृष्टि से बीबीसी को लीक कर डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इनमें भारत के अंदर सांप्रदायिक शांति बिगाड़ने ,9 राज्यों के विधानसभा चुनाव तथा अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के साथ भारत के विदेशी संबंधों को प्रभावित करने की मंशा हो सकती है। ब्रिटेन और भारत सहित दुनिया भर में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो संघ, भाजपा और तत्काल नरेंद्र मोदी को लांछित करने, उनके विरुद्ध जनता के अंदर आक्रोश पैदा करने तथा विश्व भर में उनकी छवि को कलंकित करने के लिए किसी सीमा तक जा सकते हैं। हालांकि इनकी समस्या यह है कि उन मुद्दों पर दुष्प्रचार करते हैं जिनका लाभ भाजपा और तत्काल मोदी को मिलता है। क्योंकि यह झूठ एवं एकपक्षीय होता है इसलिए देश का बहुमत कभी इसे स्वीकार नहीं करता। जो विचारधारा किसी मजहब के विरुद्ध नफरत और हिंसा पर आधारित होगी उसे इतने लंबे समय तक जनता का समर्थन नहीं मिल सकता। 2002 से 2014 तक लगातार गुजरात दंगों को लेकर सघन अभियान चले और इसका लाभ भाजपा एवं मोदी को मिला। इसलिए ज्यादा संभावना इसी बात की है कि वर्तमान डॉक्यूमेंट्री चुनावों में भाजपा को क्षति की बजाय लाभ पहुंचा सकते हैं । चुनावी लाभ हानि से परे यह प्रश्न बड़ा है कि आखिर कौन शक्तियां है जो भारत में शांति, स्थिरता और सामाजिक सद्भाव तथा विश्व में भारत का बढ़ता कब सहन नहीं कर पा रही?

India Edge News Desk

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